Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-23)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


जब चंद्रिका उस बनावटी पहाड़ी से नीचे उतर रही थी तो  सुमंत्र रात का भोजन कर टहलने निकला था ।वह ताजी हवा खाने के लिए बग़ीचे में आ गया था ।वैसे तो बहुत से बग़ीचे थे महल में लेकिन वह देवदत्त पर नजर रखने के लिए अक्सर शाम के समय इसी बग़ीचे में आकर बैठता था।उसको यूं राजकुमारी कजरी का देवदत्त से हंसी मखौल करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि उसे देवदत्त बाहर से आया एक छलिया परदेसी लगता था जो उसके जैसे बांके नौजवानों के लिए ईर्ष्या का कारण था उसके अनुसार वो महल में रहकर औरतों पर बुरी नजर रखता था।वह चंद्रिका पर डोरे डाल रहा था और इधर कजरी को भी बहला फुसला रहा था।वह उसे जहर जैसा लगता था।उसमें कोई कमी निकल आये बस यही तो चाहता था सुमंत्र।

उसने एक औरत की परछाई को उस बनावटी पहाड़ी से उतरते देखा।उसे बड़ा अजीब सा लगा । क्योंकि उसने ओढ़नी तो दासियों जैसी पहन रखी थी लेकिन चाल ढाल से वो दासी बिल्कुल भी नहीं लग रही थी।वह उसका पीछा करते हुए गलियारे तक पहुंच गया जहां देवदत्त का कक्ष था जब वह वहां पहुंचा तो देवदत्त चंद्रिका को कक्ष के अंदर खींच चुका था।बस उसकी ओढ़नी ही बाहर पड़ी थी ।

  सुमंत्र ने दौड़कर ओढ़नी को देखा तो वो वास्तव में किसी दासी की ही थी फटी पुरानी सी।वह देवदत्त को फंसाने के चक्कर में कक्ष से कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा ।जब देवदत्त ने लड़की का नाम अर्थात चंद्रिका को सम्बोधन से बुलाया तो सुमंत्र के तो पांव तले की जमीन खिसक गई।

"अरेरेरे…..ये तो चंद्रिका है जो बिना राज आज्ञा के देवदत्त से मिलने आ गयी है ।ये तो राजा वीरभान के साथ धोखा है ।वो ऐसा नहीं कर सकती एक राज नर्तकी हो कर यूं सार्वजनिक रूप से किसी से नहीं मिल सकती ।राज नर्तकी का मतलब राजा की मिल्कियत है ये ।इसका अपने जीवन पर कोई अधिकार नहीं है  ये ना तो किसी से प्यार कर सकती है और ना ही किसी से ऐसे मिल सकती है।  ये बात तो राजा जी को बतानी ही पड़ेगी।"

यह सोचकर सुमंत्र उल्टे पांव लौट गया। चंद्रिका भी कक्ष से निकल ही रही थी कि तभी राजकुमारी कजरी उस ओर आती दिखाई दी ।वह दिन में दो बार देवदत का हालचाल पता करने आती थी क्योंकि उसे बस देवदत्त के आसपास बने रहना था ।उसे राज नर्तकी चंद्रिका तो फूटी आंख नहीं सुहाती थी क्योंकि उसे पता था कहीं ना कहीं देवदत्त उसमें दिलचस्पी कम और। चंद्रिका को। ज्यादा पसंद करता है ।उसकी वासना भरी प्यार की मनुहार देवदत्त को बिल्कुल नहीं भाती थी पर वो राजपुत्री थी इसलिए देवदत्त का कोई बस नहीं चलता था।

जैसे ही चंद्रिका देव के कमरे से निकली तो उसे सामने से राजकुमारी कजरी को देखा तो ओट में हो गयी । क्योंकि मां ने कहा था "किसी को पता नहीं चलना चाहिए तुम देवदत्त से मिलने गयी थी।" इस लिए वह एक खंभे के पीछे छुप गई पर राजकुमारी को कुछ शक सा हुआ कि खंभे के पीछे कोई है जो अभी-अभी देवदत्त के कमरे से निकला है उससे कड़क कर बोला,"कौन है वहां ? एक क्षण देर किये बगैर बाहर आ जाओ नहीं तो तलवार से सिर कलम कर दिया जाएगा।"


चंद्रिका का मुख पीले पत्ते जैसा हो गया और वह अंदर से कांप गयी । ज्वर की मार तो पहले ही थी फिर अभी अभी प्रियतम से बिछुड कर मन विचलित था इसलिए लम्बा घूघंट निकाल कर खंभे के पीछे से बाहर आ गयी और आवाज बदल कर बोली,"राजकुमारी जी ,राज शिल्पी जी ने कुछ फल मंगवाएं थे वहीं देने आई थी।"


उसकी ओढ़नी ओर आवाज सुनकर राजकुमारी निश्चित हो गई कि ये तो कोई दासी ही थी। वह देवदत्त के कक्ष की ओर चल दी।

इधर चंद्रिका मन में किलस कर रह गयी कि उसके प्रियतम के पास कोई और औरत कैसे जा रही है वह मन ही मन सोच रही थी कि क्या राजकुमारी होने से उसे सारे अधिकार मिल गये है वह कभी भी कहीं भी आ जा सकती है ।नहीं  देवदत्त मेरा प्रेमी हैं वो उसके पास नहीं जा सकती ।वह घूघंट में बार बार पीछे मुड़ कर देखा रही थी फिर ना जाने उसे क्या सूझा वह पलटी और देवदत्त के कक्ष के दरवाजे से कान लगा कर खड़ी हो गयी।

हाय रे! नारी मन अब उस बावरी को ये पता था कि देव उसका ही है मन तो हामी भर रहा था लेकिन दिमाग में ये ख्याल आया कि देखूं देव क्या बात करता है राजकुमारी से ।कहीं मुझे सत्ता के दबाव में आकर धोखा तो नहीं दे रहा।


जब अंदर की बातों को सुना तो चंद्रिका की आंखों से झराझर आंसू बहने लगे।


देव राजकुमारी कजरी को कह रहा था,"राजकुमारी साहिबा ,आप बार बार यहां ना आया करें मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं एक छोटा सा शिल्पकार हूं और आप राजकुमारी । आपका उठना बैठना अपने बराबर वालों के साथ होना चाहिए न।"


" देव तुम क्या मुझ पराया समझते हो । क्या तुम को मेरी आंखों में प्यार नहीं दिखाई देता ।ऐसा क्या है उस कलमुंही चंद्रिका में जो मुझ में नहीं है ।मुझ से विवाह करके तुम राजपद के अधिकारी बन जाओगे।"

देवदत्त ने जब ये सुना तो उसका तनबदन जलने लगा गुस्से से।वह आंखें तरेर कर बोला,"माफ कीजिएगा राजकुमारी साहिबा । मैं चंद्रिका के विषय में एक भी ग़लत शब्द नहीं सुन सकता।उसका मेरे जीवन में जो स्थान है वो कोई नहीं ले सकता ।रही बात राजपद की तो मुझे कोई लालच नहीं है राजपद का। कृपया आप यहां से प्रस्थान करें तो मैं अपनी कलाकृति को थोड़ा समय दे सकूंगा ।पहले ही स्वस्थ ठीक नहीं है।"


"देव तुम ये अच्छा नहीं कर रहे हो ।मुझे ठुकराकर तुम चंद्रिका को कभी अपना नहीं बना पाओगे।"


ये कहकर राजकुमारी कजरी नागिन की तरह फुंकारते हुए कक्ष से बाहर निकल गई।



कहानी अभी जारी है…………..



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